*कहानी पूरी जरूर पढ़ना
4 Good Friends
*Must Read the full Story
It is an eye-popping story of four close friends from school.
The Promise of April 1st
Four school friends, Dinesh, Santosh, Manish, and Praveen, fresh from their SSC exams, made a pact over tea at their city's only luxury hotel. Forty rupees pooled together, a Sunday morning, and the promise:
"Fifty years from now, April 1st, we meet here again. Let's see how far we've come."
The last to arrive would settle the bill. Kalu, the waiter, vowed to be there, if he still worked at the hotel.
Life scattered them. Dinesh's father's transfer, Santosh's uncle, college—Manish eventually left too. Decades passed. The city transformed, and the once-luxurious hotel became a five-star establishment, owned by none other than Kalu, now Kalu Seth.
On the appointed day, a luxury car pulled up. Dinesh, now a successful jeweler, arrived first, gleeful at avoiding the bill. Santosh, a renowned builder, arrived next, looking aged. Then, Manish, a prosperous businessman. They waited, anticipation building.
Kalu Seth relayed a message: Praveen would be late; they should start without him. They ate, reminiscing, but Praveen never arrived. The bill, however, was paid online.
At eight PM, a young man, Ravi, approached them. "I'm Praveen's son," he said. "He passed away last month.
He wanted to be here, but his illness…
He told me to come late.
He didn't want your joy dimmed by his absence." Ravi, a city collector, revealed his father, a teacher, had instilled in him the value of education.
The friends were stunned. Kalu Seth, moved, declared, "Not fifty years, but fifty days! We'll meet here, and it's on me."
He urged them, "Don't wait to connect. Life's fleeting.
Cherish your loved ones now."
Hug not only on the day of Holi, but also on all other occasions, religious occasions and meeting every day, your friendship will grow stronger.
Happy holi and best wishes
* try it once
स्कूल के चार करीबी दोस्तों की आंखें नम करने वाली कहानी है..
जिन्होंने एक ही स्कूल में एसएससी तक पढ़ाई की है..
उस समय शहर में इकलौता लग्जरी होटल था..
एसएससी की परीक्षा के बाद उन्होंने तय किया कि हमें उस होटल में जाकर चाय-नाश्ता करना चाहिए
उन चारों ने मुश्किल से चालीस रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, और साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से होटल पहुंचे।..
दिनेश, संतोष, मनीष और प्रवीण चाय-नाश्ता करते हुए बातें करने लगे..
उन चारों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि पचास साल बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में फिर मिलेंगे..
तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि इसमें किसकी कितनी प्रगति हुई है..
जो दोस्त उस दिन बाद में होटल आएगा उसे उस समय का होटल का बिल देना होगा..
उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहां रहा तो मैं इस होटल में एआप सब का इंतजार करूंगा..
आगे की शिक्षा के लिए चारों अलग अलग हो गए..
दिनेश के पिता के बदली होने पर वह शहर छोड़ चुका था, संतोष आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, मनीष और प्रवीण को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिला..
आखिरकार मनीष भी शहर छोड़कर चला गया..
दिन, महीने, साल बीत गए..
पचास वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन आया, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर, महानगरों ने बदल दी शहर की सूरत..
अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया..
पचास साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर आई..
दिनेश कार से उतरा और पोर्च की ओर चलने लगा, दिनेश के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम हैं..
दिनेश होटल के मालिक कालू सेठ के पास पहुंचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे..
कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया है..
दिनेश मन ही मन खुश था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा, और वह इसके लिए अपने दोस्तों का मजाक उड़ाएगा..
एक घंटे में संतोष आ गया, संतोष शहर का बड़ा बिल्डर बन गया..
अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक बूढ़े सीनियर सिटिजन की तरह लग रहे था..
अब दोनों बातें कर रहे थे और दूसरे मित्रों का इंतजार कर रहे थे, तीसरा मित्र मनीष आधे घंटे में आ गया..
उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि मनीष बिजनेसमैन बन गया है..
तीनों मित्रों की आंखें बार बार दरवाजे पर जा रही थीं, प्रवीण कब आएगा..?
इतनी देर में कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर की ओर से एक मैसेज आया है, तुम चाय का नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूं..
तीनों पचास साल बाद एक-दूसरे से मिलकर खुश थे..
घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन प्रवीण नहीं आया..
कालू सेठ ने कहा कि फिर से प्रवीण सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू चुनकर खाना शुरू करें..
खाना खा लिया तो भी प्रवीण नहीं दिखा, बिल मांगते ही तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो गया है..
शाम के आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुंचा, तीनों उस आदमी को देखते ही रह गए..
युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त का बेटा रवि हूं, मेरे पिता का नाम प्रवीण भाई है..
पिताजी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया, उन्हें इस दिन का इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया..
उन्होंने मुझे देर से मिलने के लिए कहा, अगर मैं जल्दी निकल गया, तो वे दुखी होंगे, क्योंकि मेरे दोस्त तब नहीं हंसेंगे, जब उन्हें पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूं, और वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे..
इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया..
उन्होंने मुझे उनकी ओर से आपको गले लगाने के लिए भी कहा, रवि ने अपने दोनों हाथ फैला दिए..
आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को कहीं देखा है..
रवि ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने, और मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस शहर का कलेक्टर हूं..
सब चकित थे, कालू सेठ ने कहा कि अब पचास साल बाद नहीं, बल्कि हर पचास दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी..
अपने सगे-सम्बन्धियों से मिलते रहो, दोस्तों मिलने के लिए बरसों का इंतजार मत करो, जाने किसकी बिछड़ने की बारी आ जाए और पता ही नही चले..
शायद यही हाल हमारी भी है मैं अपने कुछ दोस्तों को सुप्रभात, शुभरात्रि आदि का मैसेज भेज कर जिंदा रहने का प्रमाण देते है
जिंदगी भी ट्रेन की तरह है जिसका जब स्टेशन आयेगा उत्तर जायेगा. रह जाती हैं एक धुधली सी यादें।
परिवार के साथ रहें, जिंदा होने की खुशी महसूस करें..
सिर्फ होली के दिन ही नहीं अन्य सभी अवसरों धार्मिक अवसरों तथा दिन प्रतिदिन मिलने पर भी गले लगाया करें आपकी मित्रता प्रगाढ़ हो जाएगी
होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
*एक बार कोशिश तो करो